संत तुकाराम बीज 2025: वैकुंठ गमन दिवस | Sant Tukaram Beej 2025: Vaikuntha Gaman Divas
वह महाराष्ट्र के महान संत, कवि और समाज सुधारक थे, जिन्होंने अपने अभंगों के माध्यम से भक्ति और सामाजिक चेतना को जन-जन तक पहुँचाया। इस वर्ष 16 मार्च 2025 को संत तुकाराम बीज मनाई जाएगी, जिसे उनके सदेह वैकुंठ गमन दिवस के रूप में जाना जाता है।
संत तुकाराम महाराज: जीवन और विरासत | Sant Tukaram Maharaj: Life and Legacy
उनका जन्म 1609 में माघ शुद्ध पंचमी (वसंत पंचमी) के दिन हुआ था। उनका जीवन संघर्षों से भरा था, लेकिन उन्होंने इन संघर्षों को अपने आध्यात्मिक साधना और भक्ति के माध्यम से पार किया। उनकी कविताएँ, जिन्हें अभंग कहा जाता है, आज भी लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हुई हैं। 1650 में, केवल 41 वर्ष की आयु में, उन्होंने फाल्गुन कृष्ण द्वितीया को सदेह वैकुंठ गमन किया।
उनका जन्म पुणे के पास स्थित देहू गांव में हुआ था। वे मोरे वंश से थे और उनका उपनाम अंबिले था। तीन भाइयों में वे मध्यम थे। बचपन में ही उनके माता-पिता का देहांत हो गया, जिससे उनका जीवन कठिनाइयों से भर गया। उन्होंने अपने जीवन की कठिनाइयों को सहन करते हुए भक्ति और समाज सुधार का मार्ग अपनाया।
तुकाराम बीज: इस दिन का महत्व | Tukaram Beej 2025 Date: Significance of the Day
संत तुकाराम बीज के दिन, भक्तगण उनकी शिक्षाओं को स्मरण करते हैं और अभंग गान, कीर्तन, पदयात्रा (दिंडी) जैसे कार्यक्रमों का आयोजन करते हैं। देहू, जो उनका जन्मस्थान है, इस दिन विशेष रूप से भक्तों से भर जाता है। इंद्रायणी नदी के किनारे स्थित नांदुरकी वृक्ष, जहाँ से माना जाता है कि संत तुकाराम ने वैकुंठ गमन किया था, आज भी भक्तों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन संत तुकाराम ने अपने अनुयायियों को अपने अंतिम प्रवचन दिए और उसके बाद वे भगवंत विठोबा के सान्निध्य में चले गए। इस दिव्य घटना को चिरकाल तक स्मरण रखने के लिए भक्तजन इस दिन को बड़े श्रद्धा भाव से मनाते हैं।
संत तुकाराम की शिक्षाएँ | Teachings of Sant Tukaram
संत तुकाराम का योगदान केवल भक्ति तक सीमित नहीं था, बल्कि उन्होंने समाज सुधार के लिए भी कार्य किया। उन्होंने जातिवाद, अंधविश्वास और धार्मिक आडंबरों के खिलाफ आवाज उठाई और भक्ति के माध्यम से समाज में समानता और प्रेम का संदेश फैलाया। उनका विचार था कि सच्ची भक्ति वही है, जो आत्मा को पवित्र करती है और मनुष्य को सच्चाई और करुणा के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।
उन्होंने यह भी सिखाया कि भक्ति केवल मंदिरों तक सीमित नहीं है, बल्कि सच्ची भक्ति का अर्थ है ईमानदारी, परोपकार और सेवा भाव से जीवन जीना। उनके अनुसार, सच्चे संत वही हैं जो समाज के कल्याण के लिए कार्य करते हैं।
अभंग वाणी की अनमोल धरोहर | Tukaram Maharaj Abhang: The Precious Legacy of Abhanga Vani
संत तुकाराम की अभंगवाणी मराठी साहित्य और भारतीय आध्यात्मिकता की अनमोल धरोहर है। उनके प्रसिद्ध अभंगों में से एक:
“आम्ही जातो आपुल्या गावा । आमचा राम राम घ्यावा ।। तुमची आमची हे चि भेटी । येथुनियां जन्मतुटी ।।”
इस अभंग में संत तुकाराम अपने भक्तों से विदाई लेते हुए कहते हैं कि अब वे अपने परमधाम को जा रहे हैं, लेकिन उनकी भक्ति और शिक्षाएँ सदा जीवित रहेंगी।
उनकी अन्य प्रसिद्ध रचनाओं में “पंढरीची वारी”, “विठ्ठल नामाचा गजर” और “हरिपाठ” शामिल हैं, जो आज भी वारकरी संप्रदाय के अनुयायियों के लिए भक्ति का मुख्य आधार बनी हुई हैं।
संत तुकाराम की सामाजिक क्रांति | Social Revolution by Sant Tukaram
संत तुकाराम केवल एक भक्त नहीं थे, बल्कि वे एक सामाजिक क्रांतिकारी भी थे। उन्होंने समाज में व्याप्त भेदभाव और असमानता को खत्म करने के लिए अपने अभंगों का उपयोग किया। उन्होंने सिखाया कि सभी मनुष्य समान हैं और भगवान के सामने किसी का भी ऊँच-नीच नहीं है। उन्होंने नारी सम्मान पर भी बल दिया और महिलाओं को भक्ति और समाज में समान स्थान देने की वकालत की।
उनका जीवन संदेश था कि भगवान केवल उन्हीं को प्राप्त होते हैं, जो मन, वचन और कर्म से शुद्ध होते हैं। उनका भक्ति आंदोलन केवल धार्मिक उपदेश नहीं था, बल्कि समाज को एक नई दिशा देने का एक सशक्त माध्यम था।
संत तुकाराम की जानकारी मराठी में | Sant Tukaram Information in Marathi
संत तुकाराम महाराज हे वारकरी संप्रदायातील एक महत्त्वाचे संत होते. त्यांचा जन्म इ.स. 1609 मध्ये पुणे जिल्ह्यातील देहू येथे झाला. त्यांचे जीवन अभंग वाणीने समृद्ध होते आणि त्यांच्या कीर्तनाने समाज जागरूक झाला. त्यांनी जातिभेद, अंधश्रद्धा आणि धार्मिक कर्मकांडांच्या विरोधात आवाज उठवला आणि भक्तीच्या माध्यमातून समाजात प्रेम आणि समानतेचा संदेश दिला. त्यांची अभंग वाणी आजही लाखो भक्तांना प्रेरणा देते.
निष्कर्ष | Conclusion
संत तुकाराम बीज केवल एक धार्मिक उत्सव नहीं है, बल्कि यह दिन हमें उनकी शिक्षाओं को आत्मसात करने और सत्य, प्रेम, करुणा, और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देता है। उनकी गाथा केवल महाराष्ट्र ही नहीं, बल्कि पूरे विश्व के लिए आध्यात्मिक प्रेरणा का स्रोत बनी हुई है।
उनका जीवन हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति का अर्थ केवल पूजा-पाठ नहीं, बल्कि समाज के लिए सेवा और प्रेमभाव से जीवन जीना है। संत तुकाराम महाराज के अभंगों और शिक्षाओं को आत्मसात कर हम अपने जीवन को भी आध्यात्मिक ऊँचाइयों तक पहुँचा सकते हैं।
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