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चिपको आंदोलन एक पर्यावरणीय आंदोलन है जो भारत के उत्तराखंड राज्य के गहरवाल जिले के एक छोटे से गांव चिपको (जो अब चमोली जिले का हिस्सा है) में १९७३ और १९७४ के दौरान शुरू हुआ था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य वनों की संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन की रक्षा करना था।
इस आंदोलन का नाम “चिपको” संस्कृत शब्द “चिपकना” से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “चिपकना” या “जकड़ लेना”। यह आंदोलन मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा चलाया गया था और इसमें स्वदेशी और पर्यावरणीय तत्व थे।इस आंदोलन का एक प्रमुख संदर्भ था – जंगलों को विकसित करने के लिए निजी कंपनियों के लिए लगाए जा रहे विकासी योजनाओं के खिलाफ मुखर होना। आंदोलन के नेता चंद्रा सिंघ रावत और गौरी देवी ने संगठित ढंग से इस आंदोलन को प्रारंभ किया था।
आंदोलन की उत्पत्ति | चिपको आंदोलन की शुरुआत कब और किसने की?
चिपको आंदोलन की उत्पत्ति का मूल उद्देश्य वन्यजीवियों की संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन की रक्षा करना था। इस आंदोलन का नाम “चिपको” संस्कृत शब्द “चिपकना” से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है “चिपकना” या “जकड़ लेना”।चिपको गांव, जो अब चमोली जिले का हिस्सा है, भारत के उत्तराखंड राज्य में स्थित है। इस छोटे से गांव के लोगों ने वन्यजीवियों के संरक्षण के लिए आंदोलन का आरंभ किया। आंदोलन का शुरूआती समय १९७३ और १९७४ के दौरान हुआ था।चिपको आंदोलन के नेतृत्व में चंद्रा सिंघ रावत और गौरी देवी जैसे प्रमुख वृक्षरक्षक थे, जिन्होंने इस आंदोलन को संगठित ढंग से चलाया। इसमें मुख्य तौर पर महिला सदस्यों ने भी भाग लिया और इसे महिला सशक्तिकरण का एक महत्वपूर्ण माध्यम बनाया।
आंदोलन की उत्पत्ति का मुख्य तंत्र था वृक्षों को गिरने से रोकने और नई पौधे लगाने का। ग्रामीण समुदाय के सदस्य एक मानव चैन बनाते थे, और जब वन्यजीवियों को काटने वाले लोग पहुंचते, तो वे चिपकते और जंगली पेड़ को गिरने से रोक देते। इस तरीके से, उन्होंने वन्यजीवियों की संरक्षण को विश्वासपूर्वक साबित किया और आंदोलन को सफल बनाने में सहायक रहा।चिपको आंदोलन ने भारत सरकार को वन्यजीव संरक्षण के प्रति सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया और १९८० में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम को लागू करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। इस आंदोलन के सफलता से पर्यावरणीय जागरूकता में वृद्धि हुई और लोगों के बीच एकता और सहयोग की मिसाल प्रस्तुत की गई।
चिपको आंदोलन की विशेषता
चिपको आंदोलन की विशेषता उसके पर्यावरणीय आधार और एकता में थी, जो मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा चलाया गया था। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य वन्यजीवियों की संरक्षण और पर्यावरणीय संतुलन की रक्षा करना था। यह आंदोलन भारत के उत्तराखंड राज्य के गहरवाल जिले के एक छोटे से गांव चिपको में १९७३ और १९७४ के दौरान शुरू हुआ था।
चिपको आंदोलन की मुख्य विशेषता:
- महिला सशक्तिकरण: यह आंदोलन मुख्य रूप से महिलाओं द्वारा नेतृत्वित किया गया था। महिलाएं वन्यजीवियों की संरक्षण के लिए सड़कों पर आवरण बनाकर उन्हें बचाने में सक्रिय रहीं। इससे न केवल उन्होंने पर्यावरण के प्रति जागरूकता फैलाई, बल्कि समाज में महिलाओं के लिए एक सकारात्मक परिवर्तन भी देखा गया।
- हुग अ ट्री, हग अ मान: यह आंदोलन विशेषता से प्रसिद्ध हुआ, जिसमें आंदोलन के सदस्य वन्यजीवियों को गिरने से रोकने के लिए अपने शरीर को पेड़ों से जकड़ लेते थे। जब वन्यजीवियों को काटने वाले लोग पहुंचते, तो सदस्य उन्हें चिपकते और वन्यजीवी संरक्षण की रक्षा करते। यह एक असाधारण रूप से सफल तकनीक थी, जिसे बाद में “हुग अ ट्री, हग अ मान” के नाम से जानी जाने वाली।
- पर्यावरण संरक्षण के लिए सामाजिक एकता: चिपको आंदोलन ने पर्यावरणीय मुद्दे को सामाजिक एकता का एक माध्यम बनाया। इसमें संघर्ष करने वाले लोगों के बीच एकता बढ़ी और लोग इसके समर्थक बने। आंदोलन ने लोगों को जागरूक किया कि उनकी साझेदारी आवश्यक है ताकि पर्यावरण के लिए संवेदनशीलता विकसित की जा सके।
- भारतीय सरकार को प्रेरित करना: चिपको आंदोलन ने भारत सरकार को वन्यजीव संरक्षण के प्रति सक्रिय होने के लिए प्रेरित किया। इस आंदोलन के फलस्वरूप, १९८० में वन्यजीव संरक्षण अधिनियम को लागू किया गया, जिससे ग्रामीण लोगों को वन्यजीवियों को संरक्षित करने और प्रबंधन करने में सहायता मिली।
आंदोलन के प्रभाव
इस आंदोलन के प्रभाव के कुछ महत्वपूर्ण पहलू
- वन्यजीव संरक्षण अधिनियम: चिपको आंदोलन ने भारत सरकार को प्रेरित किया और 1980 में “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम” को लागू करने में मदद की। यह अधिनियम वन्यजीवियों की संरक्षण, प्रबंधन, और उनके विकास को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया था। इससे ग्रामीण लोगों को वन्यजीवियों को संरक्षित करने और प्रबंधन करने में सहायता मिली।
- पर्यावरणीय जागरूकता: चिपको आंदोलन ने पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ावा दिया। इसमें सदस्यों द्वारा वृक्षों की रक्षा के माध्यम से प्रकृति के प्रति सहानुभूति और जिम्मेदारी का संदेश दिया गया। यह आंदोलन लोगों को पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति संवेदनशीलता विकसित करने में सहायक रहा।
- सामाजिक एकता: चिपको आंदोलन ने लोगों के बीच सामाजिक एकता को बढ़ाया। इस आंदोलन में लोग साझेदारी का महत्व समझने लगे और समुदाय के सदस्य एक दूसरे के साथ मिलकर वन्यजीव संरक्षण के लिए प्रयास करने लगे। यह एकता समाज में सकारात्मक बदलाव को लाने में मदद करती है।
- पर्यावरणीय अध्ययन: चिपको आंदोलन ने पर्यावरणीय अध्ययन को बढ़ावा दिया। आंदोलन के सदस्य वन्यजीवियों के प्रति अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं को अध्ययन करने में लगे। इससे पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अधिक जागरूकता फैली।
चिपको आंदोलन के इन प्रभावों ने भारतीय समाज में पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझाया और सामाजिक एकता को बढ़ाया। इस आंदोलन ने पर्यावरणीय जागरूकता को बढ़ावा देने के साथ-साथ समाज में पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी का भाव भी जगाया।
चिपको आंदोलन का महत्व
चिपको आंदोलन भारतीय और विश्व पर्यावरणीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण घटना है। यह आंदोलन पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक प्रेरणा स्रोत बना और लोगों में पर्यावरणीय जागरूकता को फैलाने में मदद की। चिपको आंदोलन के महत्व को निम्नलिखित तत्वों में समझा जा सकता है:
- पर्यावरण संरक्षण की जागरूकता: चिपको आंदोलन ने लोगों को पर्यावरण संरक्षण के महत्व को समझाया। इस आंदोलन के माध्यम से लोगों को यह समझाया गया कि वन्यजीवियों की संरक्षण और वन्य प्राकृतिक संतुलन की रक्षा क्यों आवश्यक है। यह जागरूकता पर्यावरणीय समस्याओं के समाधान के लिए लोगों को सक्रिय करने में मदद करती है।
- पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के लागू होना: चिपको आंदोलन ने भारत सरकार को प्रेरित करके “वन्यजीव संरक्षण अधिनियम” को 1980 में लागू करने में मदद की। यह अधिनियम वन्यजीवियों की संरक्षण, प्रबंधन, और उनके विकास को सुनिश्चित करने के उद्देश्य से बनाया गया था। इससे वन्यजीव संरक्षण के क्षेत्र में आवश्यक कदम उठाने में मदद मिली।
- सामाजिक एकता बढ़ना: चिपको आंदोलन ने सामाजिक एकता को बढ़ाया। इस आंदोलन में विभिन्न समुदायों के लोगों ने मिलकर वन्यजीव संरक्षण के लिए साझेदारी बनाई। यह एकता समाज में सकारात्मक बदलाव को लाने में मदद करती है और समाज के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- पर्यावरणीय अध्ययन को बढ़ावा: चिपको आंदोलन ने पर्यावरणीय अध्ययन को बढ़ावा दिया। आंदोलन के सदस्य वन्यजीवियों के प्रति अधिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए वन्यजीव संरक्षण और पर्यावरण के विभिन्न पहलुओं को अध्ययन करने में लगे। इससे पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में अधिक जागरूकता फैली और समस्याओं के समाधान के लिए नए और सुरक्षित उपाय खोजने में मदद मिली।
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